रोटी की महक -22-Sep-2022
कविता -रोटी की महक
महकते रोटी का मंज़र,अजीब होता है
मगर कहां ये सबको नसीब होता है
इस कस्तूरी के चक्कर में घूमती है दुनिया
कोई बड़ा नसीब वाला कोई बदनसीब होता है
इसकी खुशबू भी कितनी अज़ीज़ होती है
दो टूक रोटी किसी भूखे को खिला कर देख
यह महक दिल के कितना करीब होती है
रोटी खरीदी नही जाती, लोगों में बांट कर देख
कितना सुकून मिलता है ये जान जायेगा
पेट काटते इंसान के जीवन में, झांक कर देख
खुद बा खुद महक रोटी का पहचान जायेगा
ढूंढ़ते रोटी की महक हम ,यहां तक आ गये
लौटना भी मुस्किल है, हम जहां तक आ गये
रोटी की कीमत है प्राणों से भी ज्यादा प्यारी
महक रोटी की अब हर सांसों में आ गये
रोटी के लिए लोग गढ़ते हैं मुकद्दर
कोई नहाता रात दिन पसीने से होता तर
आती किसी को बू इस रोटी के महक से
मिटते मिटाते खुद को कर जाते हैं गदर
रोटी भी लिख जाती है, तकदीर किसी की
तदबीर किसी की, तस्वीर किसी की
बहुतों को देखा हसते रोते किसी को
बन जाती है महक रोटी की नसीब किसी की
रचनाकार- रामवृक्ष बहादुरपुरी, अम्बेडकरनगर।
Pratikhya Priyadarshini
25-Sep-2022 12:37 AM
Bahut khoob 🙏🌺
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Raziya bano
23-Sep-2022 07:26 PM
Nice
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आँचल सोनी 'हिया'
23-Sep-2022 12:38 PM
Achha likha hai 💐
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